कन्यादान
रो नहीं पाया मगर,
कुछ अंदर ही अंदर टूटा,
जब तेरा नन्हा हाथ
मेरे हाथों से छूटा।
वो तेरी किलकारियाँ
वो शैतानियां,
वो मासूमियत तेरी
वो बचपन की नादानियाँ।
कहीं ख़ुशी थी
था कहीं रूठा रूठा ,
जब तेरा हाथ
मेरे हाथों से छूटा,
मेरे स्कूटर में बैठ कर
मुस्कुराया करती थी ,
हाथों को पकड़ कर
दूकान ले जाया करती थी,
वो तेरा स्कूल का पहला दिन,
जब बहुत रोई थी,
वो राते जब मेरी गोद में
सर रख के सोई थी।
कहती थी बाबा आप साथ हो गर
तो कहाँ किसी से डरी हूँ मैं,
आपकी जान हूँ
आपकी परी हूँ मैं.
अपने घुंगराले बालों को
जब खुजलाया करती थी,
हमे भी हंसाती
खुद भी मुस्कुराया करती है ,
मायूस थी ना जाने क्यों
ये चेहरे की मुस्कान,
जब किया
अपनी नन्ही परी का कन्यादान।
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