लगी होगी बरखा,
छायी होगी कुयेडी,
मुस्कुरा रहे होंगे
भीगे हुए पहाड़।
गाँव के रास्तों में तैर रही होंगी
कागज़ की नावें,
दादा जी बैठे होंगे
तिबार में ले कर हुक्का।
और लोग बैठे होंगे
चूल्हे के पास,
कुछ तो भूज रहे होंगे
गर्म गर्म करारे करारे भट्ट।
किसी का बन गया होगा
बड़ा गिलास गर्म चाय का.
तो कोई घुसा होगा।
रजाई के अंदर।
और अगर लाइट नहीं होगी
बारिश के कारण
जैंसा की अक्सर होता है.
तो कुछ लोग दे रहे होंगे
गालियां
बिजली विभाग को.
तो कुछ निकल गए होंगे घर से
एक आधा के जुगाड़ में.
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