वो कहते हैं आजाद है देश
इतना भी तो काफी है,
फिर क्यों उन हाथों को देख लगे
की कसर अभी भी बाकी है,
क्यों आज फिर भी नन्हा बचपन
मिलता कूड़े के ढेरों में,
क्यों आज भी भविष्य लाखो,
खोये हैं अंधेरों में.
क्यों आज भी लोग बहुत
सोते हैं भूखे पेट यहाँ,
क्यों आज भी कुचलते जाते है
गरीबी को सेठ यहाँ।
क्यों ढाबों मैं आज भी छोटू ,
बर्तन जूठे धोते हैं,
क्यों आज भी माँ बाप बहुत से
अपने बच्चों के भविष्य को रोते है।
वो कहते हैं आजाद है देश
इतना भी तो काफी है,
फिर क्यों उन हाथों को देख लगे
की कसर अभी भी बाकी है,
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