रोटी

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रोटी

वो नन्हे कदम 
धूप में जलते नहीं  हैं ,
वो किसी सरकार  के साये में 
पलते नहीं हैं। 
वो तब शुरू कर देते हैं
 सफर अपना
जब बचपन के 
पाँव ठीक से सम्भलते नहीं हैं । 
बस्ते वालों को देख 
शिकायत तो करते हैं रब से,
लेकिन फिर मुस्कुरा देते हैं 
उन फ़टे काले लब से.
इन्हे कोई ज्यादा 
ख्वाहिशें नहीं होती,
बस मिल जाए 
एक दो वक़्त की रोटी।  



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