माँ.....


     माँ..... 
मेरी नन्ही उँगलियाँ पकड़ पर 
चलना सिखाती मेरी माँ,
गिरते जब नन्हे कदम मेरे 
संभलना सिखाती मेरी माँ.
दुनिया टेढ़ी है संभल कर चलना 
अक्सर ये बात मुझे समझाती मेरी  माँ,
हो अगर तबियत थोड़ी सी  भी खराब 
तो डाक्टर बन जाती मेरी माँ.
उम्मीदें बहुत है मुझसे 
सपने गिनवाती मेरी माँ,
सपने छोड़ तू बस खुश रह 
अंत में ये बात कह जाती मेरी माँ।
मैं कॉल न करूं किसी दिन 
तो बहुत घबराती मेरी माँ, 
कितनी रोटी खाई तूने  
अक्सर गिनती करवाती मेरी माँ.
मुस्कुरा जाता है 
उनका चेहरा ,
जब मेरी कविताओं में 
खुद को पाती है मेरी माँ.
लोग पूछते हैं संजीत 
मुस्कुराना कहाँ से सीखा 
तो उस वक़्त 
याद आती है मेरी माँ.






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