घस्यारी.

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घस्यारी 
घर से सुबह दराती उठा कर,
वो चल पड़ती है घास के लिए,
जंगल में  पहुंचते ही,
शुरू हो जाती है उसकी जंग 
काटों और झाड़ियों के साथ.
फिर  भी लड़ झगड़ के 
वो निकाल लेती है कुछ घास 
और बाँध लेती है 
एक बड़ी सी बोदगी  घास की.
फिर सूखे गले के साथ वो चढ़ती है 
पहाड़ की चढाई,
और कर लेती है पार हर मुश्किल को,
हर दिन की तरह.
सूखता गला बोलता है 
की काश कहीं पानी मिल जाता।
लेकिन मन कहता 
जल्दी चल बच्चे आ गए होंगे 
स्कूल से.
और हाथों पैरों में बहुत से 
चिराडे  बुराडे लेकर 
वो चल पड़ती है,
घर की ओर. 



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