एक चाय का घूट

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रिश्ता बड़ा अटूट है,
अपनी साथी तो बस ये चाय की घूट है.
मेरा पहाड़ ही खूबसूरत है 
तेरे शहरों में तो बस लूट है.
अकेले हूँ लेकिन मुस्कुरा लेती हूँ.
दर्द तो है बस छुपा लेती हूँ.
तेरा बचपन अपने आँचल में महसूस करती हूँ।
तेरी यादों को जब मन करे पा लेती हूँ.
तू दो दिन आता है बेटा 
और फिर चला जाता है शहर ,
अब ये चाय ही है मेरी सहेली मेरी हमसफ़र। 
रिश्तों का मोह भी बड़ा अजीब है,
लगता है गया है कुछ छूट,
बना लेती हूँ फिर अपने अकलेपन  में 
एक चाय का घूट। 





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